अमरोहा- सैदनगली मे पूर्व वर्षाे की भांति इस वर्ष भी मौलाये कायनात, शेरेख़ुदा हजरत अमीरूल मोमनीन अली इब्ने अबी तालिब की शबे ज़रबत के अवसर पर एक मजलिस का आयोजन महल वाली मसजिद में किया गया ।मजलिस को सम्बोघित मौलाना आसिफ रजा ने किया।उन्हाेने कहा कि मौला अली फजीलतो का समन्दर है आपकी वीरता की कहानी संसार के हर व्यक्ति की जबान पर है। संसार के दूसरे व्यक्तियो को अगर हम देखे तो वह किसी एक विशेषता के कारण प्रसिद्व हुये परन्तु मौला अली अगर जंग के मैदान मे वीरता के जौहर दिखते है तो यही अली रात को अपने कांघो पर ग़ल्ला लाद कर मोहताज, फकीरो जरूरतमंदो तक पहुचाते है।
जब आप ईबादत करते है तो आप एक महान इबादत गुजार नजर आते हैं। बादे रसूल स.अ.व. आप से बडा कोई वक्ता नजर नही आता। आप से बढ कर कोई ज्ञानी दिखाई नही देता, आपकी सच्चाई, अमानतदारी, इन्साफ पसन्दी की मिसाल नही मिलती। आपने हाकिम बन कर दुनिया के हाकिमो के लिये एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।उसकी तारीफ कोई क्या कर सकता है जिसकी तारीफ अल्लाह कुराने पाक में करे और जिसकी फजीलत में बेशुमार अहादीस पैग़म्बर स.अ.व. है।
जिसका जन्म खानये काबा में हो और जिसकी शहादत मसजिद में हो। आज उस अली की शबे जरबत है । इब्ने मुलजिम ने मसजिदे कोफा में नमाज में सजदे की हालत मे मौला अली के सर पर ज़हर से बुझी तलवार का सर पर वार किया की आपका सर दोपारा हो गया। आपने फरमाया की अली कामयाब हो गया। इस जखम के कारण 21 रमजान को आपकी शहादत हो गयी । यह सुनकर अज़ादारो में कोहराम मच गया। इस बीच मेहराब ए मसजिद से ताबूत बरामद किया गया और अज़ादार मातम करते हुये ताबूत और अलमो के साथ इस जुलूस को तयशुदा रास्तो से ले कर चले तथा यह जुलूस इमामबारगाह पीर जी पर समाप्त हो गया। इस मौके पर अनवर हुसैन, तालिब हुसैन, मुशाहिद हुसैन, दानिश हैदर, अरशद रज़ा, डा मोहम्मद जाफर, सदफ रज़ा, अरीब हैदर, कुमेल असग़र, मेहंदी रज़ा, जर्रार मेहदी, ज़ैग़म अब्बास, अम्मार हैदर, डॉ. अहमद मुर्तज़ा, हसन मेहदी, मुहम्मद अब्बास, नज़र अब्बास, क़म्बर रज़ा, नसीमुल हसन, मिसाल अब्बास, फ़हीम हैदर डा समर रज़ा आदि लोग मौजूद रहे ।जुलूस के समय पुलिस द्वारा सुरक्षा का प्रबंध कड़ा किया गया।