नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा बाजार से पशुओं की खरीद पर रोक लगा दी गई है। केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह अधिसूचना जारी कर यह रोक लगाई है। जिसके बाद इस बैन ने अब अपना चौतरफा असर दिखाना शुरू कर दिया है। इसने चमड़ा, मांस और दूध कारोबार, तीनों को अपनी चपेट में ले लिया है। इन कारोबारों में लगे लोगों का धंधा चौपट होने की कगार पर है और लाखों लोग बेरोजगारी की ओर धकेल दिए गए हैं।
बैन का सबसे ज्यादा असर गोवा के पर्यटन उद्योग पर पड़ा है, जहां रूसी और दूसरे यूरोपीय देशों के पर्यटक बीफ की मांग करते हैं। रूसियों का खाना तो स्टीक (बीफ से बना आइटम) के बगैर पूरा ही नहीं होता। एक रिपोर्ट के मुताबिक गोवा में हर साल लगभग 6 लाख पर्यटक आते हैं। ट्रैवल और टूरिज्म एसोसिएशन ऑफ गोवा के प्रेसिडेंट सेवियो मेसियस का कहना है कि गोवा के होटल और रेस्तरां कारोबारियों के सामने बेहद संकट की स्थिति है।
बैन से गोवा के मीट और पर्यटन कारोबारी सकते में हैं। गोवा के मीट कारोबारी कर्नाटक के सीमावर्ती जिलों से पशु लाते हैं। लेकिन यहां के पशु हाटों में वध के लिए लाए जाने वाले भैंसों और दूसरे जानवरों की संख्या घट गई है। मीट के लिए कर्नाटक के बाजारों की ओर रुख करने वाले गोवा के मीट कारोबारियों को अब खाली हाथ लौटना पड़ रहा है।
चूंकि राज्य में बीजेपी की सरकार है, ऐसे में यह उम्मीद करना कि वह पशु बैन के खिलाफ खड़ी होगी, गलत होगा। कोई रास्ता नहीं निकला तो पर्यटक गोवा आना छोड़ देंगे और होटल, रेस्तरां और मीट कारोबार पूरी तरह डूब जाएगा।
पशु बाजार से मवेशियों को लाने के खतरे ने देश के सबसे बड़े दूध बाजार कोलकाता में दूध सप्लाई घटा दी है। कारोबारियों का कहना है कि वे यूपी के पशु हाटों से मवेशी लाते हैं। लेकिन गोरक्षक और पुलिस यह नहीं देखती कि ये मीट के लिए लाए जा रहे हैं या दूध के लिए। पहले यहां डेढ़ लाख लीटर दूध लाया, ले जाया जाता था। लेकिन सप्लाई घट कर आधी रह गई है। दूध के के दाम 50-55 रुपये प्रति लीटर से बढ़ कर 70 रुपये तक पहुंच गए हैं।
1951 से ही यहां दूध का कारोबार कर रहे डेयरी फार्म जहूर अहमद एंड सन्स के मालिक सनवर अली कहते हैं कि पहले मेरे फार्म से 3000 लीटर दूध आता था लेकिन अब यह घट कर 1000 लीटर रह गया है। मुझे अपने यहां काम करने वालों को तनख्वाह देनी पड़ती है। अगर यही हालात रहे तो कब तक तनख्वाह देंगे।
दरअसल, दूध कारोबार का एक चक्र होता है। जब मवेशी कम दूध देने लगते हैं या बंद कर देते हैं तो किसान उन्हें बेच कर दूध देने वाला नया मवेशी खरीद लेते हैं। इससे उनकी आय का स्त्रोत बना रहता है। लेकिन अब मवेशी न बेच पाने की स्थिति में उनकी रोजी-रोटी पर संकट आ खड़ा हुआ है।