गुजरात विधान सभा चुनाव के नतीजों और रुझानों से साफ हो गया है कि राज्य में छठी बार बीजेपी की सरकार बनने जा रही है। 22 सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस को फिर से पांच साल के लिए विपक्ष में बैठना होगा। मगर गुजरात चुनावों ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव हार कर भी बाजीगर बनकर निकले हैं। एग्जिट पोल के नतीजों में भी यह बात साफ हो चुकी थी कि गुजरात में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ने वाला है। चुनाव नतीजों से भी स्पष्ट है कि टीम राहुल ने समाज के सभी वर्गों को साथ लाकर न केवल पार्टी का वोट बैंक और वोट प्रतिशत बढ़ाया है बल्कि गुजरात विकास के मॉडल को भी सवालों के घेरे में खड़ा किया है।
साल 2012 के चुनावों में बीजेपी को 39 फीससी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 9 फीसदी। यानी कांग्रेस बीजेपी से महज 9 फीसदी वोटों से पीछे थी। 2017 के एग्जिट पोल के मुताबिक बीजेपी को 47 फीसदी वोट मिलने की संभावना है जबकि कांग्रेस को 42 फीसदी वोट की। यानी राहुल गांधी पार्टी और संगठन को आमजनों तक पहुंचाकर और उनमें कांग्रेस के प्रति फिर से मोह जगाने में कामयाब रहे हैं। यही वजह है कि इस बार कांग्रेस बीजेपी से महज पांच फीसदी वोट से पीछे रह सकती है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए गुजरात चुनाव के दौरान न केवल दलितों, अल्पसंख्यकों, किसानों, व्यापारियों और बेरोजगारों की आवाज बुलंद की है बल्कि सोशल मीडिया के जरिए सवाल पूछकर पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की बोलती भी बंद की है। इन्हीं प्रयासों ने राहुल गांधी की छवि को निखारा है। इसके अलावा अपने भाषणों में जिस तरह से राहुल ने मृदुभाषी होने का परिचय दिया है, वह उनके लिए ताकत बनकर उभरा है। इन्हीं वजहों से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपने टारगेट (150 सीटों) से पीछे रहे हैं।
दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी का गढ़ कहलाने वाले गुजरात में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इन चुनावों में न केवल लंबी लकीर खींची है बल्कि बीजेपी आलाकमान और पीएम मोदी को भी विकास से बेपटरी कर दिया। यही वजह रही कि पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अधिकांश चुनावी रैलियों में विकास के बजाय राहुल पर निजी हमला करते रहे। राहुल गांधी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कांग्रेस की सीटों को न केवल बचाते नजर आ रहे हैं बल्कि 2012 में जीते 61 सीटों के आंकड़े से भी इस बार आगे निकलते दिख रहे हैं, जबकि बीजेपी ताजा रुझानों के अनुसार मौजूदा 115 सीटें भी बचाने में कारगर होती नहीं दिख रही है।