अमरोहा( शहजाद आब्दी ): अली इब्ने अबी तालिब पैगम्बर मुहम्मद (स.) के चचाजाद भाई और दामाद थे. आपका चर्चित नाम हज़रत अली (Hazrat Ali) है. दुनिया उन्हें महान योद्धा और मुसलमानों के खलीफा (Khalifa) के रूप में जानती है. इस्लाम के कुछ फिरके उन्हें अपना इमाम तो कुछ उन्हें वली के रूप में मानते हैं. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि अली एक महान वैज्ञानिक भी थे और एक तरीके से उन्हें फादर ऑफ़ साइंटिस्ट (Father of Scientist) भी कहा जा सकता है.।
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17 मार्च 600 ( 13 Rajab 24 BH) को अली का जन्म मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबे के अन्दर हुआ. ऐतिहासिक दृष्टि से हज़रत अली एकमात्र व्यक्ति हैं जिनका जन्म काबे के अन्दर हुआ. जब पैगम्बर मुहम्मद (स.) ने इस्लाम का सन्देश दिया तो कुबूल करने वाले अली पहले व्यक्ति थे.
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बात करते हैं हज़रत अली के वैज्ञानिक पहलुओं पर. हज़रत अली ने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया.
एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी पूछी तो जवाब में बताया की एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है. उनके इस कथन के चौदह सौ सालों बाद वैज्ञानिकों ने जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई. अगर अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा ली जाए तो यही दूरी निकलती है. ।
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इसी तरह एक बार अंडे देने वाले और बच्चे देने वाले जानवरों में फर्क इस तरह बताया कि जिनके कान बाहर की तरफ होते हैं वे बच्चे देते हैं और जिनके कान अन्दर की तरफ होते हैं वे अंडे देते हैं.।
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अली ने इस्लामिक थियोलोजी (Islamic Theology-अध्यात्म) को तार्किक आधार दिया. कुरान को सबसे पहले कलमबद्ध करने वाले भी अली ही हैं. बहुत सी किताबों के लेखक हज़रत अली है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं
१. किताबे अली (Kitab E Ali)
२. जफ्रो जामा (Islamic Numerology पर आधारित)- इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें गणितीय फार्मूलों के द्वारा कुरान मजीद का असली मतलब बताया गया है. तथा क़यामत तक की समस्त घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. यह किताब अब अप्राप्य है.
३. किताब फी अब्वाबुल शिफा (Kitab Fi Abwab Al Shifa)
४. किताब फी ज़कातुल्नाम (Kitab Fi Zakatul Name)
हज़रत अली की सबसे मशहूर व उपलब्ध किताब नहजुल बलागा (Nahjul Balagha) है, जो उनके खुत्बों (भाषणों) का संग्रह है. इसमें भी बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन है.।
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माना जाता है की जीवों में कोशिका (Cells) की खोज 17 वीं शताब्दी में लीवेन हुक ने की. लेकिन नहजुल बलाग का निम्न कथन ज़ाहिर करता है कि अली को कोशिका की जानकारी थी. “जिस्म के हर हिस्से में बहुत से अंग होते हैं. जिनकी रचना उपयुक्त और उपयोगी है.
सभी को ज़रूरतें पूरी करने वाले शरीर दिए गए हैं. सभी को काम सौंपे गए हैं और उनको एक छोटी सी उम्र दी गई है. ये अंग पैदा होते हैं और अपनी उम्र पूरी करने के बाद मर जाते हैं. (खुतबा-81) ” स्पष्ट है कि ‘अंग’ से अली का मतलब कोशिका ही था.
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हज़रत अली सितारों द्बारा भविष्य जानने के खिलाफ थे, लेकिन खगोलशास्त्र सीखने के हामी थे, उनके शब्दों में “ज्योतिष सीखने से परहेज़ करो, हाँ इतना ज़रूर सीखो कि ज़मीन और समुद्र में रास्ते मालूम कर सको.” (77वाँ खुतबा – नहजुल बलागा)
इसी किताब में दूसरी जगह पर यह कथन काफी कुछ आइन्स्टीन के सापेक्षकता सिद्धांत से मेल खाता है, उसने मख्लूकों को बनाया और उन्हें उनके वक़्त के हवाले किया. (खुतबा – 01)
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चिकित्सा का बुनियादी उसूल बताते हुए कहा, “बीमारी में जब तक हिम्मत साथ दे, चलते फिरते रहो.”
ज्ञान प्राप्त करने के लिए अली ने अत्यधिक जोर दिया, उनके शब्दों में, “ज्ञान की तरफ बढो, इससे पहले कि उसका हरा भरा मैदान खुश्क हो जाए.”
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यह विडंबना ही है कि मौजूदा दौर में मुसलमान हज़रत अली की इस नसीहत से दूर हो गया और जाहिलियत और फिरकेबाजी जैसी अनेकों बुराइयां उसमें पनपने लगीं. अगर वह आज भी ज्ञान प्राप्ति की राह पर लग जाए तो उसकी हालत में सुधार हो सकता है.।
सन्दर्भ :
विकिपीडिया
नहजुल बलागा