मेरा सवाल आप सबसे हैं जो इस लेख को पढ़ रहे हैं आप चाहे जिस भी मज़हब(धर्म) से हैं। आज आप खुद अपने दिल से अपनी भावनाओं से अपने दिमाग से फैसला करें और जवाब दें के अगर….
*अगर कोई 60 साल का इंसान 3 दिन का भूका प्यासा हो और अपने परिवार के साथ किसी ऐसे जंगल में दुश्मनो के बीच घिरा हो जहा उसके दुश्मनो के अलावा कोई ना हो हर कोई उसके खून का प्यासा हो
*और उस इंसान के दोस्त उसकी आँखों के सामने मर जाए,जिनके साथ वो बचपन से रहा हो*अगर उसी इंसान के 32 साल के भाई के हाथों कोकाट दिया जाय और वो भाई के कटे हाथो को अपने हाथों से उठाए और बराबर के भाई को तड़पता हुआ देखे अपनी आँखों के सामने मरता हुआ देखे*अगर उसी इंसान के 13 साल के भतीजे को दुश्मन घोड़े के नीचे ऐसे टुकड़े टुकड़े करदें के लाश टुकड़ो में बिखर जाय बाद में वो इंसान उन टुकड़ो को चुन चुन कर अपने कुर्ते के दामन में उठा कर लाए।
*अगर उस इंसान के 18 साल के जवान बेटे के सीने पर उसी की आँखों के सामने दुश्मन ऐसा भाला( Javelin) मार दे जो सीधा दिल के पार होजाय और वो मज़लूम बाप अपने उस जवान बेटे के दिल से उस भाले को निकलना चाहे तो भाले के साथ साथ बेटे का दिल भी निकल आये और जवान बेटा बाप की गोद में एड़िया रगड़ता हुआ मर जाए।और बूढा बाप ठोकरे खाता हुआ अकेला ही जवान बेटे का लाशा उठाए,
*अगर उसी इंसान के 6 महीने(month) के मासूम बच्चे के गले पर कोई ज़ालिम एक ऐसा तीर मारे के जो तीर बच्चे के कद(height) से तीन गुना लंबा हो और तीर बच्ची के वजन से 4 गुना भारी हो और तीर बच्चे की गर्दन में पार होता हुआ बाप के बाजू में भी पार हो जाए और 6 महीने का मासूम बाप की गोद में मर जाय,और उसका बाप अकेला ही अपने बच्चे की क़ब्र बनाए,
*फिर आखिर वो इंसान जालिमो के बीच अकेला रह जाय और ज़ालिम उस पर इतने तीर बरसाय के पूरा जिस्म(शरीर) तीरो से ढक जाय,और वो अपने रब(भगवान) को याद करके अपनी गर्दन को झुकाए तो ज़ालिम उसकी गर्दन को बिना धार वाले खंजर(तलवार) से काट डालें।और उसके सर को उसके जिस्म से अलग कर डालें
अब आप बताइये के जब जब उस इंसान का नाम आयेगा उसकी ये क़ुर्बानी याद आएगी तो उसकी याद में आँखों से आंसू नहीं आएंगे तो क्या आयेगा?और अगर वो इंसान हुसैन(अस०) हो के जो मुसलमानो के नबी का प्यारा नवासा हो,जिसको नबी ने बचपन में अपनी ज़ुबान चुसाई हो जिसको अपने कांधे पर बिठाया हो।उसपर इतना ज़ुल्म ढाया गया,अब बताइये कैसे ना रोय हमारा दिल हुसैन को याद कर के क्यों हमारी आँखों में आंसू ना आय क्यों हम हुसैन की याद ना मनाए हम तो हुसैन अस० की नस्ल(औलाद) हैं, कोई दूसरा भी इस बात को सुनेगा वो भी रो देगा,उसका दिल भी इस ज़ुल्म को बर्दाश्त नहीं कर पायेगा।इमाम हुसैन अस० के ग़म पर फतवा और रोक लगाने वाले कभी अकेले अपने किसी जवान का लाशा उठा कर देख फिर तुझे समझ आयेगा हुसैन कितना बड़ा मज़लूम है।
लेखक: सय्यद मोमिन ज़ैदी [फंदेड़ी सादात]