- भेदभाव भूल मालेरकोटला का गुरुद्वारा बना कोरोना वॉरियर
- गुरुद्वारा के प्रमुख ने कहा- किसी बच्चे को भूखा नहीं रहने देंगे
दिल्ली (VoH News): जहाँ जमात को लेकर पुरे भारत में सियासत गर्म है वहीँ एक गुरुद्वारे ने मानवता की सबसे बड़ी मिसाल पेश की है। हम बात कर रहे हैं संगरूर जिले के मालेरकोटला में स्थित एक गुरुद्वारे की। कसबे में स्थित एक मदरसे के 40 बच्चे लॉकडाउन में फंस गए थे। उनके सामने खाने का संकट आ गया तो गुरुद्वारा हादा नारा साहिब ने इनकी जिम्मेदारी ले ली है। ज्यादातर बच्चे यूपी-बिहार से हैं। गुरुद्वारा के प्रमुख ग्रंथी नरेंद्र पाल सिंह कहते हैं- किसी बच्चे को भूखा नहीं रहने देंगे।
करीब डेढ़ लाख आबादी वाला मलेरकोटला पंजाब का इकलौता मुस्लिम बहुल कस्बा है। पंजाब के गुरुद्वारों, मंदिरों के बीच जामा मस्जिद और शीश महल की अलग जगह है। यहां के नवाब शेर मोहम्मद ने गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रोें को दीवार में जिंदा चुनवाने को गैर-इस्लामी कहा था। तभी से दोनों संप्रदायों में अनोखा रिश्ता है।
The Quint की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की ओर लॉकडाउन के एलान के बाद कुछ बच्चों को अपने घरों के लिए रवाना कर दिया गया था, लेकिन 40 के क़रीब बच्चे यहां फिर भी फंसे रह गए थे। इन बच्चों को ख़ुद के लिए खाने का इंतज़ाम करने में काफ़ी परेशानी हो रही थी। ये बात जब गुरुद्वारा कमेटी को पता लगी तो, उन्होंने इन सभी बच्चों को खाना खिलाने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।
The Tribune से बात करते हुए मदरसे की ज़िम्मेदारी संभाल रहे मौलवी ने गुरुद्वारे का धन्यवाद करते हुए बताया, ‘कर्फ़्यू लगने के बाद सभी ट्रेनें कैंसल हो गईं. हमें कर्फ़्यू लगने का अंदाज़ा नहीं था, इसलिए हम कोई व्यवस्था नहीं कर पाए. लेकिन हम गुरुद्वारा कमेटी के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने इसकी देखभाल की. जब भी कोई परेशानी में होता है तो वो हमेशा उसकी मदद करते हैं.’
ऐसे ही और भी गुरुद्वारे हैं, जो रोज़ दो वक़्त का खाना क़रीब 1,000 लोगों को खिला रहे हैं। मालेरकोटला में ही एक और गुरुद्वारा है, जो लॉकडाउन के बाद फंसे प्रवासी मज़दूरों की देखभाल कर रहा है।