असम में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की जिस अंतिम लिस्ट को जारी किया गया है, उसमें करगिल युद्ध में मारे गए एक सैनिक के भतीजे का नाम नहीं है.
ग्रेनेडियर चिनमॉय भौमिक राज्य के कछार इलाक़े के बोरखोला चुनाव क्षेत्र के रहने वाले थे और उनकी मौत करगिल युद्ध के दौरान 1999 में हुई थी. चिनमॉय के 13 साल के भतीजे पिनाक भौमिक का नाम एनआरसी की इस लिस्ट से ग़ायब है जबकि उनके माता-पिता और परिजनों के नाम लिस्ट में है. इस परिवार के तीन लोगों ने भारतीय सेना में नौकरी की है और चिनमॉय के अलावा बड़े भाई संतोष और छोटे भाई सजल भौमिक फ़ौज से रिटायर हुए हैं.
पिनाक जरोलताला गाँव के पास के सरकारी स्कूल की कक्षा 9 में पढ़ते हैं और इन दिनों पिता के बड़े भाई के साथ पुश्तैनी मकान में रह रहे हैं. उनके चाचा संतोष ने कहा, “एनआरसी प्रक्रिया का कोई बुरा मक़सद नहीं था लेकिन जिस तरह से इसे अंजाम दिया गया है वो और बेहतर हो सकता था. 40 लाख लोगों का नाम नहीं आने का मतलब इसकी नाकामी है.” राज्य में जारी किए गए ताज़ा रजिस्टर के मुताबिक दो करोड़ 89 लाख लोग असम के नागरिक हैं जबकि यहां रह रहे 40 लाख लोगों के नाम इस सूची में नहीं हैं. यानी 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया है बाहरी समझा जा रहा है असम में मार्च 1971 के पहले से रह रहे लोगों को रजिस्टर में जगह मिली है, जबकि उसके बाद आए लोगों के नागरिकता दावों को संदिग्ध माना गया है. हालाँकि भारत सरकार ने कहा है जिन लोगों का नाम एनआरसी सूची में नहीं आया, उन्हें डिटेंशन कैंप में नहीं रखा जाएगा और नागरिकता साबित करने का एक और मौक़ा दिया जाएगा.
लेकिन नाराज़ दिखे संतोष भौमिक ने बीबीसी से कहा, “हमारे भतीजे के सभी दस्तावेज़ दुरुस्त थे और मुझे उम्मीद है कि ऐसा ही दूसरों के साथ भी हुआ होगा. अब जिनका नाम नहीं आया उन्हें बाहरी समझा जा रहा है. इससे पूरे भारत में ग़लत संदेश जा रहा है. जिस सैनिक ने भारत के लिए करगिल युद्ध में जान दी उसके सगे फ़ौजी भाई का बेटा बाहरी कैसे हो सकता है भला.” भारतीय सेना में मेडिकल ऑफिसर रहे संतोष भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में पोस्टेड थे जब छोटे भाई ग्रेनेडियर चिनमॉय की मौत करगिल युद्ध के दौरान हुई थी.
संतोष ने याद करते हुए बताया, “चिनमॉय का शव मुझे दिल्ली में सौंपा गया था, जिसे लेकर मैं असम आया था.” भारत और पाक़िस्तान के बीच हुआ करगिल युद्ध 20 मई 1999 को शुरू हुआ था और 26 जुलाई को ख़त्म हुआ था. संतोष भौमिक बताते हैं, “हमारे परिवार में किसी का नाम दिसंबर 2017 में पहली बार जारी हुई एनआरसी लिस्ट में नहीं था. सभी को इंतज़ार इस लिस्ट का था लेकिन अब करगिल शहीद के भतीजे को ही इसमें से बाहर कर दिया गया है.” पिनाक के माता-पिता पिछले कई दिनों से हैदराबाद में हैं जहाँ माँ की बीमारी का इलाज चल रहा है. करगिल युद्ध में चिनमॉय भौमिक की मौत के बाद से ही बड़ी बहन दीपाली भी बीमार रही हैं. बात ख़त्म होने से पहले चाचा संतोष भौमिक ने इतना भर कहा, “हम तीन भाइयों में सिर्फ पिनाक ही अगली जेनरेशन है और उसका नाम लिस्ट में न आने से हम लोग दुखी हैं. उम्मीद है आगे कुछ तो होगा.”
क्या है एनआरसी?
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस एक ऐसी सूची है जिसमें असम में रहनेवाले उन सभी लोगों के नाम दर्ज होंगे जिनके पास 24 मार्च 1971 तक या उसके पहले अपने परिवार के असम में होने के सबूत मौजूद होंगे. असम देश का इकलौता राज्य है जहां के लिए इस तरह के सिटिज़नशिप रजिस्टर की व्यवस्था है. इस तरह का पहला रजिस्ट्रेशन साल 1951 में किया गया था. असम के नागिरकों के सत्यापन का काम सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मई 2015 में शुरू हुआ. इसके लिए रजिस्ट्रार जनरल ने समूचे राज्य में कई एनआरसी केंद्र खोले. एनआरसी में शामिल होने की योग्यता के अनुसार उन लोगों को भारतीय नागरिक माना जा रहा, जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हैं. अगर किसी व्यक्ति का नाम 1971 तक के किसी भी वोटर लिस्ट में न मौजूद हो, लेकिन किसी दस्तावेज़ में उसके किसी पूर्वज का नाम हो तो उसे पूर्वज से रिश्तेदारी साबित करनी होगी. अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए वो 12 तरह के सर्टिफ़िकेट या काग़ज़ात, जैसे जन्म प्रमाण पत्र, ज़मीन के काग़ज़, पट्टेदारी के दस्तावेज़, शरणार्थी प्रमाण पत्र, स्कूल-कॉलेज के सर्टिफ़िकेट, पासपोर्ट, अदालत के पेपर्स पेश कर सकते हैं. 1 जनवरी 2018 को एनआरसी की पहली लिस्ट और 30 जुलाई को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के दूसरे और अंतिम मसौदे को जारी किया गया.
रजिस्टर के मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख लोग असम के नागरिक हैं लेकिन 40 लाख लोगों के नाम इसमें मौजूद नहीं है