लखनऊ । सबका साथ सबका विकास मार्का भाजपा सरकार का यूपी में जातिवाद चरम पर है। यूपी की पिछली सरकार पर पर यादवों की नियुक्ति पर सवाल खड़े हुए थे लेकिन इलेक्शन के बाद जब सच्चाई सामने आई तो उसमें ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया कि अखिलेश सरकार ने सिर्फ यादवों की ही नियुक्ति की हो। इसके बावजूद यादवों की नियुक्ति की खबर का मीडिया ने खंडन करना उचित नहीं समझा।
अखिलेश यादव भले ही बगैर किये बदनाम हुए हों लेकिन योगी सरकार सबका साथ सबका विकास को धत्ता बताते हुए सभी महत्वपूर्ण थानों में ज्यादा से ज्यादा सवर्णों की नियुक्ति कर रही है।
पत्रिका की खबर के मुताबिक, सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी पहली कैबिनेट की बैठक के बाद अपनी प्राथमिकताओं में पुलिस महकमे में जाति विशेष के वर्चस्व को ख़त्म करके कानून व्यवस्था की स्थिति को ठीक करने की बात कही थी। वहीँ चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के सभी नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान यूपी के थानों में यादववाद होने का आरोप बार बार लगाया था।
जातिवाद को बढ़ावा देने में सबसे बुरा हाल पूर्वी उत्तर प्रदेश का है जिसमें प्रधानमन्त्री की संसदीय सीट वाराणसी भी शामिल है। वाराणसी के 24 थानों में से 23 में सवर्ण थानेदार हैं वहीँ एक ओबीसी वर्ग का है। कमोवेश यही हाल इलाहाबाद का है जहाँ के 44 थानों में से एक थाने में यादव और एक थाने की कमान मुस्लिम को दी गई है।
पूरे इलाहाबाद में एक भी थानेदार अनुसूचित जाति का नहीं है। यही हाल राजधानी लखनऊ के साथ साथ सोनभद्र, भदोही ,इलाहाबाद, कानपुर मिर्जापुर,गोरखपुर,झांसी, मुरादाबाद, मेरठ, रामपुर, वाराणसी, बरेली, आजमगढ़ जैसे जिलों के थानों का है। जहाँ ज्यादातर थानों की कमान ब्राह्मणों या ठाकुरों के हाथ में दे दी गई है।
प्रदेश के थानों में जातिवाद का बोलबाला किस कदर बढा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जालौन जिले में 19 में से 11 थानों की कमान केवल ब्राह्मण जाति के थानेदारों को दे दी गई हैं। गर नियम कायदों को देखे तो 7 जून 2002 को पारित किये गए एक सरकारी आदेश के तहत यूपी के धानो में 50 फीसदी थानाध्यक्षों के पोस्ट सामान्य श्रेणी को,21 फीसदी अनुसूचित जाति और 27 फीसदी पद अन्य पिछड़े वर्ग के अलावा 2 फीसदी पद जनजाति श्रेणी के अधिकारियों को देने का आदेश हुआ था। इसके तहत यूपी के कुल 1447 थानों में 724 सामान्य ,303 अनुसूचित जाति, 30 जनजाति और 420 थानाध्यक्षों के पद अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित किये जाने थे।
यह नहीं भुला जाना चाहिए कि भाजपा की जीत में पिछड़ों, दलितों के मतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन जिस तरह से पटेल, कुशवाहा, लोध, पासी, निषाद, विश्वकर्मा, धोबी, कोरी जैसी सशक्त पिछड़ी औऱ दलित जाति के थानेदारों के साथ नियुक्ति में भेदभाव किया जा रहा है वह चौंका देने वाला है। कमोवेश यही हाल आईपीएस अधिकारियों की तैनाती में भी हुआ है प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण जिलों में सवर्ण अधिकारियों की तैनाती की गई है। स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हिंसा की आग में जल रहे सहारनपुर में योगी आदित्यनाथ ने विवादित आईपीएस सुभाष चन्द्र दुबे की तैनाती की थी लेकिन जब हालत हद से बाहर जाने लगे तो वहां दलित आइपीएस बबलू कुमार की तैनाती कर दी गई।