V.o.H News: भारत में इस समय ट्रिपल तलाक़ का मुद्दा बहुत गर्म है और टीवी चैनलों, समाचारपत्रों से लेकर राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सार्वजनिक मंचों पर इस बारे में गर्मागर्म बहसें हो रही हैं।
इस मुद्दे के सभी पहलुओं को खंगाला जा रहा है। जहां अधिकतर मुसलमान इस मामले में सरकार के हस्तक्षेप के विरोधी हैं वहीं सरकार ने इसे मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार बता कर इसे समाप्त करने का इरादा ज़ाहिर किया है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे को राजनीति के दायरे में न लाया जाए और इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। मोदी ने कहा कि उम्मीद है कि मुस्लिम समाज से ही लोग आगे आएंगे और ट्रिपल तलाक़ के संकट से जूझ रही मुस्लिम महिलाओं के लिए रास्ता निकालेंगे। टीकाकारों का कहना है कि उन्होंने यह कह कर इस मामले का राजनीतिकरण ही किया है।
रोचक बात यह है कि भारत की सरकार ने भी और विधि आयोग ने भी देश में मुसलमानों के बीच ट्रिपल तलाक़ को लेकर कोई सर्वेक्षण नहीं किया है। इस बीच एक रोचक तथ्य सामने आया है कि तलाक़ की दर मुसलमानों से अधिक हिंदुओं में है। IndiaSpend.org नामक वेबसाइट ने सांख्यिकी विभाग के हवाले से लिखा है कि वर्ष 2011 भारत में जितने भी तलाक़ हुए उनमें 68 प्रतिशत हिंदुओं के और सिर्फ़ 23 दशमलव 3 फ़ीसदी मुसलमानों के थे। यह बात भी ध्यान योग्य है कि बहुत से लोग बिना तलाक़ दिए है पत्नी से दूर रहते हैं और पत्नी एक तलाक़ शुदा औरत का जीवन बिताती है। ऐसे में मुस्लिम जगत और सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से यह मांग ज़ोर पकड़ने लगी है कि सरकार को ट्रिपल तलाक़ पर अंकुश लगाने के लिए भागदौड़ करने से अधिक हिंदुओं में तलाक़ की बढ़ती हुई दर को रोकने की कोशिश करनी चाहिए। टीकाकारों का कहना है कि सरकार को तलाक़ के मामले में धर्म से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय स्तर पर काम करना चाहिए लेकिन वह सिर्फ़ ट्रिपल तलाक़ के बारे में ही प्रोपेगंडा कर रही है जिससे साफ़ ज़ाहिर है कि वह मुसलमानों के बीच फूट डाल कर अपने राजनैतिक हित साधने की कोशिश में है। (HN)
साभार : पारस टुडे