Sunday, September 24, 2023
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अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ाया, अब हम उनके विचारों की हत्या कर रहे हैं: भगत सिंह के भतीजे

भगत सिंह के भतीजे मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) श्योनान सिंह ने कहा कि क्रांति वह नहीं है कि आप किसी पर दाढ़ी रखने, मस्जिद जाने या राम मंदिर बनाने के लिए दबाव डालें. क्रांति एक विचार होती है जिससे अधिकतर लोग सहमत होते हैं और एक ऐसी व्यवस्था को बदलने का प्रयास करते हैं जो काम नहीं कर रही होती है. अपनी पीठ थपथपाना देशभक्ति नहीं है.

नई दिल्ली: भगत सिंह के भतीजे मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) श्योनान सिंह का कहना है कि 23 मार्च, 1931 को अग्रेजों ने भगत सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया था लेकिन 2019 में उनके विचारों की हत्या की जा रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भगत सिंह के छोटे भाई रणबीर सिंह के बेटे श्योनान सिंह शनिवार को स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की 88वीं शहीदी दिवस पर दिल्ली आर्काइव्स में बोल रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘वह चाहते थे कि लोग उनके विचार पढ़े जिसे उन्होंने शब्दों में लिखा था. अगर एक व्यक्ति भी अपना खुद का विचार बना पाता या खुद की जुबान बोल पाने वाला कोई वास्तविक विचारक होता तो भगत सिंह खुश होते. जो लोग टीवी देखकर या सोशल मीडिया के माध्यम से अपना विचार बनाते हैं, वे वास्तविक विचारक नहीं होते हैं.’

वहीं भगत सिंह के दूसरे भतीजे अभय संधू ने इस मौके पर कहा, ‘हम उनकी विचारधारा के बारे में सोच भी नहीं रहे हैं. भगत सिंह अमीर और गरीब के बीच कम खाई वाला एक समान समाज चाहते थे लेकिन आज़ादी के 71 सालों बाद यह खाई बढ़ती जा रही है.

उन्होंने कहा, ‘उनकी लड़ाई अंग्रेजों के ख़िलाफ नहीं बल्कि 1860 में बनी भारतीय दंड संहिता जैसी उस व्यवस्था के ख़िलाफ के थी जो आज भी जारी है. इस व्यवस्था को बदलने के लिए युवा भारत को आगे आना चाहिए.’

उदाहरण देते हुए मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) श्योनान सिंह ने कहा कि अमेरिका, चीन, रूस और भारत में पूंजीपति हैं. उन्होंने कहा, ‘भारत जैसे लोकतंत्र में पूंजीपति देश को नियंत्रित करते हैं जबकि साम्यवाद में राज्य पूंजीपतियों को नियंत्रित करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘मेरा कहने का यह मतलब नहीं है कि हमें साम्यवादी हो जाना चाहिए लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र हमारे हितों को पूंजीपतियों को बांट रहे हैं. तो क्या हमें लोकतंत्र के बारे में दोबारा नहीं सोचना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘हमें किसी व्यवस्था का आंख बंद करके अनुसरण नहीं करना चाहिए. एक देश के रूप में हमें सोचना चाहिए कि लोकतंत्र के साथ क्या हो रहा है.’ उन्होंने कहा कि सवाल उठाना किसी को देशद्रोही नहीं बनाता है.

उन्होंने कहा, ‘देशभक्ति और क्रांति गहने नहीं हैं जिन्हें आप पहन सकते हैं. क्रांति अधिक लोगों को अपने साथ जोड़कर बदलाव लाने का साधन है. क्रांति वह नहीं है कि आप किसी पर दाढ़ी रखने, मस्जिद जाने या राम मंदिर बनाने के लिए दबाव डालें. क्रांति एक विचार होती है जिससे अधिकतर लोग सहमत होते हैं और एक ऐसी व्यवस्था को बदलने का प्रयास करते हैं जो काम नहीं कर रही होती है. अपनी पीठ थपथपाना देशभक्ति नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘भगत सिंह ने लिखा था कि 20वीं शताब्दी में धर्म, जाति, लालच और व्यक्ति के दोहरे चरित्र के बारे में बात करना बहुत ही शर्मनाक है. लेकिन 100 सालों बाद भी आज भी हालात वही हैं कि हम इन सब चीजों को बढ़ावा दे रहे हैं. यह बहुत ही दुखद है कि उनकी मौत के लगभग सौ सालों बाद हालात बदतर हो गए हैं.’

उन्होंने कहा, ‘धर्म और राजनीति एक समान नहीं हैं. अगर आप धर्म को राजनीति में मिलाएंगे तो देश आगे नहीं बढ़ पाएगा. कुछ समय के लिए हम धर्म को एक किनारे क्यों नहीं रख देते हैं. मेरा विश्वास एक निजी मामला है. मैं अपने विश्वास को दूसरों पर क्यों थोपूं.’(साभार: द वायर)

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