कुड्डालोर (तमिलनाडु)। भारत के ग्रामीण हिस्सों में आपने धर्म परिवर्तन की खबरें तो सुनी होंगी लेकिन यहां ग्रामीणों ने नहीं, बल्कि दलित डॉक्टर्स ने हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध मार्ग को अपनाया है।
47 दलित डॉक्टर्स के हिंदू धर्म छोड़ने के सात महीनों बाद यहां रविवार को 4 और डॉक्टर्स ने अपना धर्म बदल लिया। डॉ.भीमराव अंबेडकर की 126 वीं जयंती के उपलक्ष्य़ पर 16 दलितों ने बौद्ध भिक्षुओं की उपस्थिति में बौद्ध मार्ग को अपनाया।
डॉ.थमबिया ने दावा किया कि डॉ.भीमराव अंबेडकर ने अस्पृश्यता और जातीय अत्याचार से बचने के लिए कहा था, हमें बौद्ध धर्म को गले लगा देना चाहिए। यहां तक कि अखबारों की हेडलाइंस भी कह रही हैं कि हिंदुओं ने दलितों पर किया जातीय हमला, जिसका अर्थ है कि हम हिंदू नहीं हैं।
डॉ.थमबिया के अलावा कुड्डालोर में एक प्राइवेट क्लीनिक चलाने वाली डॉ. रेणगादेवी, विल्लूपुरम में काम कर रहे डॉ.एम आनंदी और वृद्धाचलम में काम करने वाले डॉ.आर पालनीवेल ने भी बौद्ध मार्ग को गले लगाया। डॉ. थमबिया ने कहा, “बौद्ध संगम से भिक्षु ने हमारे अनुरोध को अनुग्रह और प्रमाण पत्र वितरित करने का अनुरोध स्वीकार किया है।”
डॉ.रेणुगादेवी ने व्यक्तिगत तौर पर व्यवसायिक जीवन में कभी भेदभाव का सामना नहीं किया है फिर भी डॉ. अंबेडकर का गहराई से अध्ययन करने के बाद धर्म बदलने का फैसला लिया है। वह कहती हैं, मुझे लगता है कि यह अस्पृश्यता के मुद्दों का समाधान है।
सभी धर्मांतरित लोगों ने बताया कि वे जन्म के बाद से भेदभाव का सामना कर रहे हैं। चार डॉक्टरों ने कहा कि वे राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से जल्द ही अपने समुदाय प्रमाण पत्र में परिवर्तन कर सकेंगे।
इस कार्यक्रम का आयोजन मक्कल मारुमालचाची थदाम ने किया था जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर और उद्यमियों ने हिस्सा लिया।