रिपोर्ट: शहजाद आब्दी
यहाँ क्लिक कर हमारा फेसबुक पेज लाइक करें
*.सय्यद हसन नसरल्लाह 31 अगस्त 1960 को पैदा हुए।वह दक्षिण लेबनान के अल-बजोरिया गांव से आते है। उनके पिता सय्यद अब्दुल करीम नसरल्लाह हैं। सय्यद हसन परिवार में सबसे बड़े है जिसमें तीन भाई और पांच बहनें शामिल हैं
*.उनका जन्म और निवास “अल करन्तेना” के पड़ोस में था,बेरूत के पूर्वी उपनगरीय इलाके में सबसे वंचित और सबसे गरीब इलाकों में से एक.
*.उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा “अल-क़िफा” निजी स्कूल में समाप्त करी और सीन अल-फेल क्षेत्र में”अल-थानुविया अल-तराबावादी” स्कूल में अपनी सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी पढ़ाई जारी रखी।
*.अप्रैल 1975 जब लेबनान में गृहयुद्ध (सिविल वार) भड़का हुआ था, उस वक़्त उनका परिवार अल-बज़ोरिया में लौटा, जहां उन्होंने अपनी इंटर की पढाई जारी रखी। अपनी छोटी उम्र के बावजूद उन्हें अल-बज़ोरियाह गांव में अल अमल आंदोलन में चीफ को ऑर्डिनेटर नियुक्त किया गया।
*.अपनी जवानी से ही उनमे मज़हबी तालीम के लिए खास दिलचस्पी थी और वे इमाम सय्यद मुसा अल-सद्र से काफी मुतास्सिर थे
*.जब वह लेबनान के दक्षिण केतैर इलाके में थे, उस समय वह सय्यद मुहम्मद अल-घरवी से मिले, जिन्होंने 1976 में नजफ अशरफ के हव्ज़ा में शामिल होने में उनकी मदद की। इसलिए, उन्होंने नजफ़ अशरफ जाते वक़्त सय्यद अल-घरवी की सिफारिश का ख़त अपने साथ रखा जोशहीद सय्यद मुहम्मद बाकिर अल-सद्र के नाम था, जिन्होंने उनके लिए खास दिल चस्पी दिखाई; शहीद सद्र ने उन्हे नए शागिर्द की तरह सय्यद अब्बास अल-मुसावी की देखरेख में रहने को कहा।
*.1978 में, मज़हबी मदरसों के खिलाफ ईराक में तकलीफ बढने लगी थी और सद्दाम की सरकार बहुत ज़ुल्म कर रही थी, इसके चलते उन्होंने ख़ामोशी से इराक छोड़ कर लेबनान कर रुख किया। लेबनान में, वह अल-इमाम अल-मुन्तज़र (अ.स) हव्ज़े में शामिल हो गए; इस मदरसे को शहीद सैय्यद अब्बास अल-मुसावी ने कायम किया था। वहां उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
*.बालबेक के मदरसे में उनकी पढाई के अलावा, सय्यद नसरल्लाह ने अल-बिका इलाके में अल अमल आंदोलन में अपनी सियासी गतिविधियां शुरू की, जहां उन्हें1979 में अल-बिका इलाके के अल अमल आंदोलन का पोलिटिकल ऑफिसर और पोलित ब्यूरो का सदस्य नियुक्त किया गया।
*.1982 में अल अमल आंदोलन में “इजरायल” हमले से पैदा होने वाले पोलिटिकल बदलाव और सेना के विकास पर पोलिटिकल लीडरशिप से टकराव होने के नतीजे में सय्यद हसन नसरल्लाह के साथ साथ बहुत से अफसर और वालंटियर्स ने अल अमल आंदोलन को छोड़ दिया