Thursday, November 30, 2023
No menu items!
Homeइंसानियत के रखवालेज़मीन का वायुमण्डल, आसमान का रंग और सूरज की परिधि किस ने...

ज़मीन का वायुमण्डल, आसमान का रंग और सूरज की परिधि किस ने बताई? जानने के लिए पूरा पढ़िए……V.o.H News

फेसबूक से जुड़ें – यहाँ क्लिक करके पेज लाइक करें

 रिपोर्ट: शहज़ाद आब्दी। शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एललुश्शरा में दर्ज हदीस के मुताबिक़ एक मरतबा हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम मस्जिदे कूफा में थे। मजमे से एक मर्द शामी उठा और अर्ज किया या अमीरलमोमिनीन में आपसे चन्द चीजों के मुताल्लिक कछ दरियाफ्त करना चाहता हूं। आपने फरमाया सवाल करना है तो समझने के लिये सवाल करो। महज़ परेशान करने के लिये सवाल न करना। उसके बाद सायल ने सवाल किये उनमें से तीन सवाल इस तरह थे,

 

 

इमाम ऐ जुमा-मौलाना सय्यद मोहम्मद रज़ा ज़ैदी
इमाम ऐ जुमा-मौलाना सय्यद मोहम्मद रज़ा ज़ैदी

उसने सवाल किया कि ये दुनियावी आसमान किस चीज़ से बना? आपने फरमाया आँधी और बेनूर मौजों से। उसने सूरज का तूल व अर्ज (परिधि) के मुताल्लिक पूछा। आपने फरमाया नौ सौ फरसख को नौ सौ फरसख से ज़र्ब दे दो। उसने सातों आसमान के रंग और उनके नाम दरियाफ्त किये। तो आपने फरमाया पहले आसमान का नाम रफीअ है और उसका रंग पानी व धुएं की मानिन्द है।….

 

अब हम इन सवालो व जवाबों को मौजूदा साइंस की रोशनी में गौर करते हैं।

 

अगर ज़मीन के आसमान की बात की जाये तो पूछने वाले का मतलब वायुमंडल से था जो ज़मीन के ऊपर हर तरफ मौजूद है। हम जानते हैं कि वायुमंडल में गैसें हैं और साथ में आयनोस्फेयर है जहां पर आयनों की शक्ल में गैसों की लहरें हैं। ये गैसें कभी एक जगह पर तेजी के साथ इकट्ठा होती हैं तो आँधियों की शक्ल में महसूस होती हैं और कभी बिखरती है तो मौसम पुरसुकून होता है। इसके बावजूद फिज़ा कभी इन गैसों से खाली नहीं होती। 

 

अगर आम आदमी को समझाने के लिये कहा जाये तो ज़मीन की फिज़ा में आँधियां हैं और लहरें या मौजें। चूंकि ये मौजें रोशनी की नहीं है बल्कि मैटर की हैं लिहाज़ा हम इन्हें बेनूर मौजें कह सकते हैं। और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम के जवाब में आ रही है।  

 

सवाली का दूसरा सवाल सूरज के तूल व अर्ज़ यानि कि परिधि के मुताल्लिक था। जवाब में हज़रत अली (अ.) ने फर्सख में ये लम्बाई बतायी जो उस वक्त लम्बाई नापने की आम यूनिट थी। फर्सख फासला नापने की फारसी यूनिट होती है। ये उस फासले के बराबर होती है जो एक घोड़ा एक घण्टे में तय करता है। 19 वीं सदी में इसे 6.23 किलोमीटर के बराबर माना गया। जबकि अरब में इसे 4.83 किलोमीटर के बराबर माना गया। 

सूरज की डायमीटर नासा के अनुसार 1391000 किलोमीटर है। इस तरह इसकी परिधि की लम्बाई हुई 4370000 यूनिट्स। 900 को 900 से ज़र्ब देने पर नतीजा आता है 810000 फर्सख। अगर इसे फारसी यूनिट के अनुसार किलोमीटर में बदला जाये तो नतीजा आयेगा 5046300 यूनिट्स। जबकि अरबी यूनिट के अनुसार नतीजा होगा 3912300 यूनिट्स। 

 

अगर फर्सख को किलोमीटर में बदलने में अलग अलग जगहों के फर्क को नज़र में रखा जाये तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सरूज की परिधि के बारे में जो बताया वह पूरी तरह मौजूदा साइंस की कैलकुलेशन से मैच कर रहा है। 

 

चाँद का साइज़ बताने में कई दूसरे साइंसदानों जैसे कि आर्यभट वगैरा का भी जिक्र आता है। और ये उतनी हैरत की बात भी नहीं क्योंकि चाँद की तरफ नज़र की जा सकती है और यह ज़मीन के करीब भी है। लेकिन सूरज जिसकी तरफ नज़र टिक ही नहीं सकती, उसके बारे में इतनी सटीक कैलकुलेशन यकीनन इमाम अली अलैहिस्सलाम की इमामत का चमत्कार ही कहा जायेगा।  

 

तीसरा सवाल आसमान के रंग के मुताल्लिक था। जब हम ज़मीन पर रहते हुए आसमान की तरफ नज़र करते हैं तो यह नीले रंग का दिखाई देता है। जबकि शाम या सुबह के वक्त इसका रंग थोड़ा बदला हुआ लाल या काला मालूम होता है। 

लेकिन जो लोग स्पेसक्राफ्ट के ज़रिये ज़मीन से बाहर जा चुके हैं। उन्हें न तो ये आसमान नीला दिखाई दिया और न ही लाल। इसलिए क्योंकि ये रंग ज़मीन पर इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि ज़मीन का वायुमंडल सूरज की रोशनी में से खास रंग को हर तरफ बिखेर देता है। 

चूकि ज़मीन के बाहर वायुमंडल नहीं है इसलिए वहां ये रंग नहीं दिखाई देते। तो फिर वहां कौन सा रंग दिखाई देगा? ज़ाहिर है कि वहां चारों तरफ ऐसा कालापन दिखाई देगा जिसमें पानी की तरह रंगहीनता (colorlessness) होगी। यही रंग बाहर जाने वाले फिज़ाई मुसाफिरों ने देखी और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने जवाब में बता रहे हैं कि पहले आसमान का रंग पानी व धुएं की मानिन्द है। 

पानी का रंग नहीं होता और धुएं का रंग काला होता है। दोनों को मिक्स करने पर जो रंग बनता है वही फिज़ाई मुसाफिरों को ज़मीन से बाहर निकलने पर दिखाई देता है।

जो बातें आज साइंसदानों को ज़मीन से बाहर निकलने पर मालूम हुई हैं वह इमाम अली अलैहिस्सलाम चौदह सौ साल पहले मस्जिद में बैठे हुए बता रहे थे। और इस्लाम के सच और इल्म की गवाही दे रहे थे। वह इल्म जो दुनिया के सामने चौदह सौ साल बाद आने वाला था।

—–

इस तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए “51 जदीद साइंसी तहक़ीक़ात जो दरअस्ल इस्लाम की हैं” देखें जो अब्बास बुक एजेंसी लखनऊ ने प्रकाशित  है. 

फेसबूक से जुड़ें – यहाँ क्लिक करके पेज लाइक करें

 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments