दिल्ली/अली अब्बास नकवी-
या अली
या अली मदद
ये सब आपने कइयों के मुह से परेशानी के घड़ी में ज़रूर सुनी होगी। क्योंकि ये नाम ही ऐसा है जिसे हर परेशानी में पुकारो तो परेशानियां दूर हो जाती है। इसी लिए हर पीर फ़कीर, सूफी, कव्वाली आदि में आपको अली अली अली अली ही मिलता है।
आखिर अली हैं कौन?
आखिरी रसूले खुदा (स व अ) के दामाद और जानशीन थे हज़रत अली (अ.स.)
जिन्होंने हमेशा नबी के रास्ते को अपनाया जोकि सच्चाई और इंसानियत का रास्ता है जिसे ईश्वर का रास्ता कहते हैं।
हज़रत अली अस ही ने हुकुम ए रसूल ए खुदा(सवअ) के बाद सूरज तक को पलट दिया था ..यहीं नही एक बार तो मुर्दे इंसान को अपनी ठोकर से ही ज़िंदा कर दिया था। जभी रसूल (स) ने कहा था की जिस जिस का मैं मौला उस उस का अली अस मौला। जो मेरा दोस्त वो अली का दोस्त और जो अली का दुश्मन वो मेरा दुश्मन।
लिखने को तो अगर मैं अली अस की फ़ज़ीलत लिखूं तो शायद दिन रात गुज़र जायेंगे लेकिन ये फज़ीलत या यूँ कहूँ उनकी तारीफ कम नही होगी।
लेकिन कहते हैं न जो नेक रास्ते पर चलता है उसके हज़ारों दुश्मन बनते जाते हैं। बस 19 रमजान का रोज़ा था। इमाम अली अस घर से सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए निकलते है जेसे ही नमाज़ के लिए सजदे में जाते हैं तो लानति अब्दुर रेहमान नाम के ज़लील इंसान ने मौला अली अस पर तेज़ाब से लगी हुई तलवार मार दी। और नमाज़ पढ़ते ही ज़रबत लगा दी।
लेकिन देखिये ज़रबत लगे हुए भी मौला अली कहते हैं की मेरे क़ातिल को न मारना और इसको कुछ खिला पिला दो।
3 दिन बाद 21 रमजान होती है और मौला अली अस की शहादत हो जाती है। पूरा जहाँ में मायूसी छा जाती है की जो अपना खाना भी दूसरो को देता था अब वो न रहा। अब कौन यतीमों का ख्याल रखेगा। अब कौन होगा सहारा।
और बस अली अस का नाम ही ऐसा है की जिसे हर इंसान पुकारता है।
लेकिन वो ज़ालिम लोग जिन्होंने नेक रास्तों पर चलने वालों को मारा उनकी नस्ल आज तक ज़िंदा है। कोई आईएस की शक्ल में है तो कोई तालिबान कोई आतंक की शक्ल में मासूम और बेगुनाह को मारने वाला। अल्लाह ओ अकबर के नारे लगा कर आईएस जेसे आतंकी संघठन इस्लाम की चादर ओढे हुए हैं। लेकिन वो भूल जाते है हमेशा सच्चाई जीतती है झूट हमेशा हारता है।